लोग बैठे हैं जिगर को थाम के //१
ऐसे क्या किस्से तुम्हारे नाम के
दिन तो सारे मुफ़लिसी में ढल गए
हैं रईसी के नज़ारे शाम के //२
तुम शहर में क्या हुए दाख़िल सनम
आदमी बाक़ी नहीं अब काम के //३
नींद तो उन रोज़ आया करती थी
अब तो बस लम्हे बचे आराम के //४
दर-ब-दर फिरती हैं यादें तन्हा सी
दौर बीते ख़त के और पैग़ाम के //५
इक बड़ा बाज़ार है ये ज़िन्दगी
आदमी मिलते यहाँ हर दाम के // ६
✒️ बह्र रमल मुसद्दस महज़ूफ़ 2122 2122 212