आँख में रोज़ सपने जलते हैं इस शहर से चलो न चलते हैं
ज़िन्दगी भर का जो सहारा थे हर घड़ी वो यहाँ बदलते हैं
कोई आँखों से दिल को मरहम दो कितने नासूर इसमें पलते हैं
ये चरागाँ फ़क़त निहाल नहीं ये तो तन्हाई लेकर जलते हैं
बह्र-ए-ख़फ़ीफ 2122 1212 22/112