उठ ! ये जंग की पुकार है
वक़्त कर रहा प्रहार है
नज़दीकियों की शक़्ल में
वो काल पे सवार है ।
ज़मीर से तू जुड़ ज़रा
सियासत का दाव छोड़ दे
मौत की कतार से हट
और सिलसिला ये तोड़ दे ।
सफ़र से अब ठहर यहाँ
और फ़ुरसतों को वक़्त दे
तू ज़हीन है तू फ़क्र कर
तू फ़ासलों की क़द्र कर ।
देख! मन से सभी एक हैं
इस बात पे अब गर्व कर
बस दिल से ही क़रीब आ
पर फ़ासलों की क़द्र कर
तू फ़ासलों की क़द्र कर ।
~ प्रशान्त ‘बेबार’