फिर मुस्कुरायेगा हिन्दोस्तान

फिर मुस्कुरायेगा हिन्दुस्तान – Love and Hope

जानां, मैं क़ैद में करवट बदल रहा हूँ
नींद में नाज़नीं ख़्वाबों से उलझ रहा हूँ
ख़्वाबों में तुम्हारे गेसू महकते हैं
मैं क्या बताऊँ, मैं कैसे सँभल रहा हूँ

मुझे मालूम है तुम भी रोज़ अटरिया पे
दिन भर का जलता सूरज फाँकती हो
किसी लम्हे की खिड़की मेरी जानिब खुले
तुम हर लम्हा-लम्हा, घड़ी ताकती हो

तुम हो हज़ारों मील दूर, गिला न करो
तुम गंगा के पानी में हथेली डुबाकर
अपना लम्स छोड़ देना आँसू मिलाकर
गंगा समंदर से मिलेगी बाहें फैला कर

मैं साहिल की रेती पे लेट जाऊँगा
आगोश में तुम्हारा लम्स समेट लाऊँगा

जानां, तुम्हे ये बताना है, देखो कि
क़फ़स में रोज़ मरने का मुक़ाम आया
मगर कूचे से इंसा फिर भी मुस्कुराया
बड़ी ज़िद्दी ज़ात है आदमी इस दहर में
मौत की गोद में जीने से बाज न आया

ज़माने ने माज़ी में बड़े कहर देखे हैं
औरत के बहते आँसू में बहर देखें हैं

जंग में फ़ना होती आदम की निशानी देखी है
महाज़े-जंग में बेवा की लुटती जवानी देखी है
हर वबाल से उलझकर इंसान निकल आया है
दर्द की ख़ातिर ही दिल के कोने में बल आया है
फ़ैज़ की शाम ग़म की है, मगर शाम ही तो है
रात के बाद उठती सुबह, हमारे नाम ही तो है

देखना मुल्क़ की साँस फिर से लौट आयेगी
सखी आँगन में बैठी, तुम्हारे मेहँदी लगाएगी
फ़स्ल-ए-गुल खटखटाएगी घर की साँकल
रोमानी फ़िज़ा फिर से चौखट सजायेगी

देखना ये आफ़ताब फिर सुर्ख़-ओ-हसीन होगा
तुम्हारी बाहों में लेटकर फ़लक़ फिर रंगीन होगा
गोलगप्पे की चाहत तुम्हारी ज़ाया न जायेगी
दौर-ए-वबा के बाद ज़िन्दगी, फिर लौट आयेगी

अभी से उम्मीदों के, यूँ न चराग़ बुझाओ
तुम दिल में इक छोटी सी शमअ जलाओ
देखना दोस्त गले मिलेगा, माशूक़ बाहों में होगा
महीनों का फिसला हुआ वक़्त, पनाहों में होगा

इश्क़ के गुंचों से फिर खिलेगा बाग़बान
दिल सुनायेगा मुहब्बत की वही दास्तान
पुरानी ख़ुशबू महकेगी साँसों में बसर
सजेगा धजेगा फिर से अपना शहर
मिट जायेंगे जो हैं दिलों में, दूरी के निशान
देखना जानां, फिर मुस्कुरायेगा हिन्दुस्तान

देखना जानां, फिर मुस्कुरायेगा हिन्दुस्तान।

~ प्रशान्त ‘बेबार’

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