मैंने थाम लिया है दिन, तुम ये रात रोक लो
करनी है देर तक बात, बस ये बात रोक लो
अब किसे आरज़ू है, यहाँ मुद्दतों ज़िन्दा रहे
पल दो पल को सही, बस हयात रोक लो
पलट जाती है ज़िन्दगी, सफ़हा पलटते ही
कुछ देर ज़िन्दगी की यही, सबात रोक लो
बस तुम्हारी ख़ुशबू आयी और मैं जी उठा
इस्से पहले कि मिलें नज़रें, जज़्बात रोक लो
सेहरा में उसे देखने की ख़्वाहिश है अधूरी
मेरे महबूब की जाती हुई, ये बारात रोक लो
हमारी तो कभी वो सुनता नहीं ‘बेबार’
अपने ही ख़ुदा से कहकर, ये हालात रोक लो