यही ख़्वाब शाम-ओ-सहर आता है
रोटी में क्यूँ उसे ज़हर नज़र आता है
कोयला फाँकने की कोई घड़ी नहीं
भूख का ही बस एक पहर आता है
सैकड़ों गाँव के सीने पे पकती है ईंट
तब जाके तुम्हारा एक शहर आता है
आपकी साँसों की क़ीमत है मालिक
हमें तो रोज़, जीने में कहर आता है
हमारी औलाद रोयें, तो चीख़ दहले
आपकी तो सिसकी में बहर आता है
बच्चा मेरा भूख से चाट गया अख़बार
सरकार के वादों में भी ठहर आता है
आपकी सेहत को काजू की बोरी है
हमें देने विटामिन डी, महर आता है
नमकीन आँसू हैं, हौले निगल ‘बेबार’
बरक़्क़तों का भी यहाँ दहर आता है
#WorldHealthDay