शाम से दिल में बेकरारी है- ग़ज़ल

शाम से दिल में बेकरारी है
बरसों सी कटती रात भारी है

इक उसी पल का मुंतज़िर होके
लम्हा लम्हा उम्र गुज़ारी है

दर्द जिसने दिया दवा भी है
इश्क़ ऐसी अजब बिमारी है

ज़िंदगी हर घड़ी सलीबों सी
मौत इक पल की ही बेचारी है

मौत का डर नहीं है आशिक को
बस झलक भर को जान वारी है

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