शाम है उसकी याद आने की
कोई तरक़ीब हो भुलाने की
लब यूँ बेहिस हुए मिरे जब भी
आती है रुत उसे बताने की
हार तस्वीर पे चढ़ाना मेरी
जब भी चाहत हो घर सजाने की
हर घड़ी यादों में यूँ तड़पाना
रुत मुकर्रर हो अब सताने की
माँगता है दुआ में वो मुझको
आदतें उसकी हैं जताने की
बह्र-ए-ख़फ़ीफ 2122 1212 22/112