है नहीं नादान वो, समझाएँ क्या
आइने को दर्द अब दिखलाएँ क्या
ज़िन्दगी से राबता है मेरा कुछ
मुश्किलें जीने की फिर बतलाएँ क्या
ख़ुद से भी हमने छुपाया राज़ वो
इस भरी दुनिया को फिर दिखलाएँ क्या
हमने तूफ़ानों को मिटते देखा है
फिर फ़क़त लहरों से अब घबराएँ क्या
थी नहीं हमको तवक़्क़ो ग़ैरों से
तुम हुए रुसवा कहो मर जाएँ क्या
कोई अब ‘बेबार’ का रक्खे भरम
उस जुनूँ-दिल को यूँ बहलाएँ क्या
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हमने उम्मीदें लगाना छोड़ा अब
तुम कहो इस दर पे ही मर जाएँ क्या
बह्र रमल मुसद्दस महज़ूफ़ 2122 2122 212