मन की पगडंडी, सपनो से आगे
बावरा मन ये, बेसुध सा भागे
सन्नाटों में शोर है
आदमी की क़ैद में यहाँ मौत है चलती हुई जिस्म की बोटी-बोटी है रेत में मिलती हुई तुम कहो, कैसे…
Read Moreबड़ी रात है ओ हमसफ़र
कुछ चाँदनी में सिमटी हुई कुछ रोशनी में लिपटी हुई छू के मुझे ले चल कहीं ख़्वाबों के पीछे मिल…
Read Moreधत्त पगली ज़िन्दगी
क्या अजब सवाल करती है ये जीना बेहाल करती है मंज़िल से इक क़दम पहले ये पक्का बवाल करती है…
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