पहले जैसी सहर नहीं आती

पहले जैसी सहर नहीं आती
कोई शबनम नज़र नहीं आती //१

होती है बस ज़माने की चर्चा
बस उसी की ख़बर नहीं आती //२

सारे कूचे सबा ये फिरती है
बस मिरे घर इधर नहीं आती //३

क्या तवक़्क़ो करें हमीं ख़ुद से
याद भी रत्ती भर नहीं आती // ४

बह्र-ए-ख़फ़ीफ 2122 1212 22/112

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