Nazm is a form of urdu poetry (analogous to Kavita in Hindi poetry). Most important condition is ‘Singular Base thought’/ ‘Ek Buniyadi Khayal’ presented in tasalsul (linking chain, concatenation).
Modern urdu poetry mei nazm ki 4 tarah ki soorat hoti hai…
1. Paaband nazm (Metered poetry)
2. Nazm-e-Muarra (blank verse)
3. Aazad nazm (Free verse)
4. Nasri nazm (Prose poetry)
आइए, तफ़सील से देखें:
1. *Paaband nazm* : Using combination of Qafiya, radif in a meter to produce misre (couplets) making Bandh.
E.g: रोटियाँ – नज़ीर अकबराबादी
जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियां।
फूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियां॥
आंखें परीरुखों से लड़ाती हैं रोटियां।
सीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियां॥
जितने मजे़ हैं सब यह दिखाती हैं रोटियां॥
जिस जा पे हांडी, चूल्हा तवा और तनूर है।
ख़ालिक की कुदरतों का उसी जा ज़हूर है॥
चूल्हे के आगे आंच जो जलती हुजूर है।
जितने हैं नूर सब में यही ख़ास नूर है॥
इस नूर के सबब नजर आती हैं रोटियां॥ and so on..
2. *Nazm-e-Muarra* – count of arkaan, length of metre is same in each misra, but restrictions of Qafiya is not there.
E.g. तन्हाई – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नहीं
राह-रौ होगा कहीं और चला जाएगा
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़
सो गई रास्ता तक तक के हर इक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिए क़दमों के सुराग़
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
अब यहाँ कोई नहीं कोई नहीं आएगा
Another e.g: by अली सरदार जाफ़री
मां है रेशम के कारख़ाने में
बाप मसरूफ सूती मिल में है
कोख से मां की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है
जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा
हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चांदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
ख़ून इसका दिए जलायेगा
यह जो नन्हा है भोला भाला है
ख़ूनी सरमाये का निवाला है
पूछती है यह इसकी खामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!
(अली सरदार जाफ़री)
3. *Aazad Nazm* – A few places, restriction of Vazn only, but length of couplets (misra) can be different but essentially describing a singular thought. In few Aazad nazm, vazn may not be equal but poetic essence while reciting remains till end.
E.g. सौदा-गर by ख़लील-उर-रहमान
लो गजर बज गया
सुब्ह होने को है
दिन निकलते ही अब मैं चला जाऊँगा
अजनबी शाह-राहों पे फिर
कासा-ए-चश्म ले ले के एक एक चेहरा तकूँगा
दफ़्तरों कार-ख़ानों में तालीम-गाहों में जा कर
अपनी क़ीमत लगाने की कोशिश करूँगा
मेरी आराम-ए-जाँ
मुझ को इक बार फिर देख लो
आज की शाम लौटूँगा जब
बेच कर अपने शफ़्फ़ाफ़ दिल का लहू
अपनी झोली में चाँदी के टुकड़े लिए
तुम भी मुझ को न पहचान पाईं तो फिर
मैं कहाँ जाऊँगा
किस से जा कर कहूँगा कि मैं कौन था
किस से जा कर कहूँगा कि मैं कौन हूँ
4. *Nasri Nazm*- A rhythm and harmony is there while reciting, but without any metre, verse aur qafiya restrictions.
E.g. स्केच – गुलज़ार
याद है इक दिन
मेरी मेज़ पे बैठे-बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुम ने
एक स्केच बनाया था
आ कर देखो
उस पौधे पर फूल आया है!
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And to achieve these types stated above, various forms of urdu poetry are used in an intermixing way such as mixing Rubai (aaba scheme), Qita (abcb scheme), masanavi (aabb scheme)…And so henceforth.
~ प्रशान्त ‘बेबार’