प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश:
पहले वतन के बेढके बदन को लुकना चाहिए
पहले वतन के बेढके बदन को लुकना चाहिए
जैसे भी हो ये पीप बहता घाव छुपना चाहिए
बह चुका ख़ून बहुत, इस अवाम-ए-हिन्द का
जैसे भी मुमकिन हो बहता ख़ून रुकना चाहिए
मन्दिर और मस्जिद में ये इंसां कहीं का न रहा
इंसानियत के सामने, अब धर्म झुकना चाहिए
बाँटने और काटने का सिलसिला कब है नया
पीर उस सीने में हो, दिल तेरा दुखना चहिए
ग़ैर की चिनगारी में घर अपना जला के बैठे हैं
ख़ुद के भी ज़मीर पे अब सवाल उठना चाहिए