रोज़ की सी बात है
ऐसी भी न ख़ास है
टाल वाली ईंटा भट्टी में
कच्ची ईंटा सी पीली है छगिया
जो तेरह में ब्याही गयी थी
यहाँ बँधुआ रखी गयी थी
दिन भर घाम में जान सूखती
रात में पति को कैसे रोकती
पथाई-भराई करने के बाद साँझ ढले,
अपनी मिट्टी सनी धोती से
दिन भर का लपेटा सूरज झटकर
आयोडीन युक्त पसीना पोंछकर
चौधरी से सौ रुपया लेती है दिहाड़ी
चौधरी अक्सर नोट खींचकर कहता है
‘जा ऐश कर’
सूखी मुस्कान से कोयला तोड़कर
हाँफती साँसों से गर्द छोड़कर
ढाई साल के बच्चे को
कमर पे टाँग लेती है
जैसे मंडी से लौटते में
बोरी लादता है कोई
बच्चे की छाती का पिंजर
माँस छोड़ रहा है
घेंघा हुआ लगता है
आयोडीन की कमी है,
ओहहो, आयोडीन तो नमक में है
और नमक आँसू में,
छगिया ने लगाया हिसाब इतना
और जड़ दिया ज़ोर का तमाचा बच्चे को
छलका नन्ही जान का आँसू
होठों के पोरों में जा पहुँचा
छगिया को थोड़ा चैन पड़ा
चलो नमक तो जा पहुँचा
फूला है पेट और सिकुड़ी है बाँह
रखकर ज़मीन पे बच्चे को
देती है मन बहलाने को अक्सर
कूड़े से बीना अख़बार का टुकड़ा
ख़ुद भी खींचती है चूल्हे का हल्का कोयला
बच्चा ख़ुश है खेल रहा है
अख़बार से रंग बीन रहा है
एक सेब देखकर इश्तेहार में
उठा के अख़बार, रगड़ता है जीभ
छगिया खाँस के डाँट देती है
अब बच्चे को डॉक्टर की ज़रूरत नहीं
बच्चा सब कुछ पढ़ा हुआ है
इश्तेहार में लिखा हुआ है
_’An apple a day keeps doctor away’_
#WorldHealthDay